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क्रोध कुआ है शत्रुता का

क्रोध विष है क्योंकि उसके नशे में व्यक्ति को भले बुरे का ज्ञान नहीं रहता। क्रोध विष है तो क्षमा सुधा। क्रोध व्यक्ति का एक स्वाभाविक गुण है।कोई भी व्यक्ति क्रोध से अछूता नहीं रह सकता है । कोई कम क्रोधी स्वभाव का होता है तो कोई व्यक्ति अधिक। जब व्यक्ति को क्रोध आता है तो वह क्रोध का दास बनकर उसके इशारे पर चल पड़ता है। जब वह क्रोध के चंगुल से निकलता है तब उसे अपने किये हुए कार्य पर अफसोस होता है। यह सास्वत सत्य है - व्यक्ति सदैव अपने से कमजोर पर ही क्रोध दिखाता है। अधिकतर व्यक्ति अपना क्रोध अपने बीबी बच्चों पर तथा स्त्री अपने बच्चों पर दिखाती है ।

क्रोध अपनों के बीच दरार डाल देता है। जब व्यक्ति जवानी की दहलीज पर कदम रखता है तो वह अपने आप को कुछ समझने लगता है। अपने से बड़ा उसे अगर समझाए तो उसे बुरा लगता है जबकि उसे ऐसा नहीं लगना चाहिए। बड़े हमेशा अच्छा ही समझाएँगे । आज की नई पीढ़ की तो बात ही अलग है। वो जैसा कर रहे है उसे वैसा करने दो अगर उसमे कुछ हस्तक्षेप कर दिया तो समझों गजब हो गया। व्यक्ति क्रोध के वशीभूत हो गया।.

आप यह भी जानते है कि कभी एक हाथ से ताली नही बजती तो आप यह भी जानते होने कि तमाचा एक हाथ से ही लगाया जाता है। व्यक्ति को विचार शैली और भाषा शैली अच्छी रखना चाहिए । व्यक्ति को सदैव सोच-समझकर बोलना चाहिए , कहीं आप जल्दी मे कुछ ऐसा तो नहीं बोल गए है कि सामने वाले के दिल को ठेस पहुंचा गया हो। अगर आप चाहते है कि सामने वाले का दिल न टूटे तो आप तुरन्त क्षमा मांग लीजिए। देखिएगा सामने वाले का क्रोध कैसे हरण हो जाता है ।

ऐसा नहीं है कि हमेशा छोटे ही गलती करते है कभी ऐसा भी होता है कि बड़ों से भी गलतियाँ हो जाती है और छोटों से कुछ ऐसा कह देते है जो उन्हें नहीं कहना चाहिए। बड़ों से भी कभी कटु शब्द निकल जाते है जो कि छोटे और बड़ों के बीच में दरार डालने मे मरहम साबित होते है।

“क्रोध कुआँ है शत्रुता का” क्रोध को नियन्त्रण में रखना चाहिए। जब व्यक्ति को क्रोध आये तो उसे अकेला हो जाना चाहिए‍ । ठण्डे पानी से हाथ मुँह धोकर मन पसंद गाने सुनने चाहिए या मनपसंद गतिविधि करनी चाहिए और बीती बातों को भूल जाना चाहिए। गुस्सा स्वयं 9-2-11 हो जायेगा।


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