मानव मन बहुत ही चंचल होता है । जो कल्पनाओं के पंख लगाकर इधर उधर भटकता है तथा सम्पूर्ण शक्ति और पूर्ण वेग के साथ कल्पनाओं के नीले गगन में विहार करता है परन्तु जीवन को सार्थक बनाने में कल्पनाओं और शक्ति का प्रयोग कर पाने में असफल रहता है । उसके मन में असफलता की टीस रह रह कर चुभती है । मन के अंदर बार बार यक्ष प्रश्न उठते है कि आखिर कहाँ कमी रह गई कल्पनाओं को सार्थक रूप देने में और क्या उपाय हो सकता है जिससे अपने सपने को अपनी कल्पना को सार्थक रूप दिया जा सके।
कल्पनाओं को सार्थक रूप कैसे दिया जाये इसे विरले ही जानते है । कल्पना मानवीय चेतना की दिव्य क्षमता है । जिसके प्रयोग से मानव जीवन में नई अनुभूतियों के द्वार खुलते है और नवसृजन के अंकुर प्रस्फुटित होते है इन्ही के बलबूते पर नवीन अविष्कारों की आधार शिला राखी जाती है। अपनी कल्पनाओं को नीचे मत गिरने दो अपनी कल्पनाओं को अपने सपनो को नए आयाम दो ,भोग विलास रास रंग की कल्पनाओ को आश्रय मत दो क्यूंकि इससे जीवन की शक्ति बर्बाद होती है ।
जो व्यक्ति बिना थके बिना रुके बिना भटके सपने देखता है तथा उसे पूरा करने के लिए सब कुछ न्योछाबर कर देता है उसके सपने अवश्य पूरे होते है ।
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