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जीव जगत

  • सभी जीवो में पोषण,  श्वसन,  उत्सर्जन, संवेदनशीलता जैसी क्रियाएं अनवरत होती रहती हैं इन्हें हम जैविक क्रियाएं कहते हैं

पोषण

  • हरे पौधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड तथा मिट्टी से जल प्राप्त करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं इसलिए यह स्वपोषी कहलाते हैं

  • कुछ जंतु अपना भोजन पेड़ पौधों से प्राप्त करते हैं उन्हें शाकाहारी कहते हैं जैसे बकरी, हिरण, चूहा आदि

  • कुछ जंतु शाकाहारी जंतुओं को अपना भोजन बनाते हैं वे मांसाहारी कहलाते हैं जैसे शेर चीता बिल्ली आदि

  • ऐसे जीव जो अपना भोजन पेड़ पौधों एवं अन्य जंतुओं अर्थात दोनों स्रोतों से प्राप्त करते हैं उन्हें सर्वाहारी कहा जाता है जैसे मनुष्य, कॉकरोच आदि।

श्वसन

  • श्वसन क्रिया में सभी जीव (जन्तु तथा पौधे) ऑक्सीजन गैस ग्रहण करते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं

  • सांस लेने पर वायु के साथ ऑक्सीजन गैस शरीर के अंदर फेफड़ों द्वारा ग्रहण की जाती है

  • ऑक्सीजन द्वारा भोजन का ऑक्सीकरण होता है जिसके फल स्वरूप ऊर्जा और कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनती है इसी ऊर्जा का उपयोग हम देने कार्य करने में करते हैं

  • मनुष्य में फेफड़ों द्वारा श्वसन क्रिया की जाती है

  • मछली में गलफड़ों द्वारा श्वसन क्रिया की जाती है

  • पानी में रहने पर मेंढक में त्वचा द्वारा तथा जमीन पर रहने पर फेफड़ों द्वारा श्वसन क्रिया की जाती है

उत्सर्जन

  • अपशिष्ट पदार्थों को शरीर के बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं

  • जंतुओं में के उत्सर्जी पदार्थ मल, मूत्र, पसीना तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैस आदि हैं

  • गोंद ,रबर, रेजिन (हींग), टैनिन (कत्था) आदि पौधों के उत्सर्जी पदार्थ हैं

संवदेनशीलता

  • किसी उद्दीपन के प्रति शरीर द्वारा की गई अनुक्रिया ही संवेदनशीलता है

  • छुईमुई लाजवंती की पत्तियों को स्पर्श करने पर पत्तियां झुककर बंद हो जाती हैं

  • लाजवंती स्पर्श उद्दीपन के प्रति संवेदनशील है

  • रातरानी रात में खिलती है तथा दिन में बंद हो जाती है

  • सभी जीव उद्दीपन के प्रति संवेदनशील होते हैं जैसे स्पर्श, ताप, प्रकाश, ध्वनि, विद्युत आदि ।

वृद्धि

  • प्रत्येक जीव आकार प्रकार में समय के साथ बढ़ता रहता है यह क्रिया ही वृद्धि कहलाती है

  • पेड़ पौधों में वृद्धि जीवन पर्यंत होती है जबकि जंतुओं में वृद्धि एक निश्चित आयु तक होती है

  • प्रजनन

  • सभी जंतुओं तथा पेड़ पौधों में अपने समान जीवो को उत्पन्न करने की क्षमता होती है इस क्रिया को प्रजनन कहते हैं

  • मनुष्य का औसत जीवनकाल 60 से 70 वर्ष होता  है

  • सिकोया वृक्ष का औसत जीवनकाल 3000 से 4000 वर्ष होता है

  • बरगद का औसत जीवनकाल 100 से 200 वर्ष होता है

  • कछुआ का औसत जीवनकाल 120 से 150 वर्ष होता है

कोशिका

  • कोशिका सजीवों के शरीर की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है

  • कुछ जीवो का शरीर केवल एक ही कोशिका का बना होता है जिन्हें नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है इन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग किया जाता है यह सूक्ष्म जीव कहलाते हैं जैसे- अमीबा, यूग्लीना, पैरामीशियम, यीस्ट ,क्लेमाइडोमोनास तथा जीवाणु आदि

वर्गीकरण

  • गुणों के आधार पर अलग-अलग समूह बनाने की प्रक्रिया ही वर्गीकरण है

  • जंतुओं को वर्गीकृत करने की मुख्य 4 तरीके हैं

  • संरचना के आधार पर

  • मेरुदंड की उपस्थिति के आधार पर

  • प्रजनन विधि के आधार पर

  • वास स्थान के आधार पर

संरचना के आधार पर

  • जिन जंतुओं का शरीर केवल एक ही कोशिका का बना होता है वे एक कोशिकीय जीव कहलाते हैं जैसे- अमीबा, पैरामीशियम तथा युगलीना

  • एक कोशिकीय जीव जीवन की उत्पत्ति में प्रथम  माने जाते हैं

  • जिन जंतुओं का शरीर एक से अधिक कोशिकाओं का बना होता है वह बहुकोशिकीय जंतु कहलाते हैं

  • यह सामान्यत: नग्न आंखों से दिखाई देते हैं जैसे हाइड्रा, घोंगा, मछली, मेंढक आदि।

अकशेरुकी जंतु

  • ऐसे जंतु जिनमें मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) नहीं पाई जाती है उन्हें अकशेरुकी जंत कहते हैं जैसे- कीड़े मकोड़े, केचुआ,  तिलचट्टा, घोंघा आदि

कशेरुकी जंतु

  • जिन जंतुओं के शरीर में रीढ़ की हड्डी मेरुदंड पाया जाता है उन्हें कशेरुकी जंतु कहते हैं जैसे मछली, मेंढक, पक्षी, गाय आदि

अंड युज

  • अंडे देने वाले जंतुओं को अंड युज  कहते हैं जैसे मछली, मेंढक, छिपकली, सर्प पक्षी तथा कीड़े मकोड़े आदि

जरायुज

  • बच्चे देने वाले जंतुओं को जरायुज कहते हैं जैसे मनुष्य, चूहा, खरगोश, गाय तथा बकरी आदि

जलीय जंतु

  • जल में रहने वाले जंतुओं को जलीय जंतु कहते हैं जैसे मछली, केंकड़ा  आदि

वायवीय जंतु

  • अधिकांश समय तक वायु में उड़ने वाले जंतुओं को वायवीय जंतु कहते हैं जैसे- पक्षी

स्थलीय जंतु

  • स्थल पर रहने वाले जंतुओं को स्थलीय जंतु कहते हैं जैसे- कुत्ता, बिल्ली, बकरी, मनुष्य आदि

उभयचर जंतु

  • ऐसे जंतु जो जल तथा स्थल दोनों स्थानों पर अपना जीवन यापन करते हैं उन्हें उभयचर जंतु कहते हैं जैसे- मेंढक, कछुआ आदि

  • थियोफ्रेस्ट्स को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा जाता है

  • कैरोलस लीनियस को वर्गीकरण का जनक कहा जाता है

  • अरस्तु जंतु विज्ञान के जनक हैं

पुष्पी पौधे

  • पुष्पी पौधों पर पुष्प और फल लगते हैं यह पूर्ण विकसित पौधे होते हैं इसमें जड़ तना तथा  पत्ती  स्पष्ट दिखाई देते हैं जैसे गुलाब, सरसों, सूरजमुखी, आम, कुमुदिनी आदि

अपुष्पी पौधे

  • अपुष्पी पौधों पर पुष्प कभी नहीं लगते हैं अधिकतर इनमें जड़ तना तथा पत्ती का अभाव होता है

  • कवक, शैवाल, मांस तथा फर्न  अपुष्पी पौधे हैं

  • मास एक पौधा है जो वर्षा ऋतु में दीवारों पर हरी मखमल के रूप में आता है

शाक

  • यह 1 मीटर से कम नाप के छोटे पौधे होते हैं इनका तना, कोमल, पतला तथा कमजोर होता है जैसे मक्का, मटर, पालक आदि

झाड़ी

  • यह 1 से 3 मीटर की औसत ऊंचाई वाले कठोर व मजबूत पौधे होते हैं इनका मुख्य तना स्पष्ट नहीं होता है यह अधिक शाखित  होते हैं तथा आपस में उलझ जाते हैं जैसे गुलाब, करौंदा, गुड़हल आदि

वृक्ष

  • यह 3 मीटर से अधिक लंबे होते हैं इनका तना मोटा काष्ठीय  शाखित या अशाखित होता है

  • तना बेलनाकार या बहुभुजाकार होता है जैसे नीम, आम, चीड़, नारियल आदि

एक वर्षीय पौधे

  • यह पौधे 1 वर्ष के कुछ महीनों के भीतर ही फूलते फलते हैं और अन्त  में सूख कर समाप्त हो जाते हैं उदाहरण के लिए फसलें जैसे- चना, मटर, गेहूं, धान, मक्का ज्वार, आदि

बहु वर्षीय पौधे

  • यह पौधे 2 वर्ष के भीतर ही अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं

  • पहले वर्ष में पौधों में जड़ें तना  तथा पत्तियां पूर्ण विकसित होकर द्वितीय वर्ष में पुष्पन, फलन तथा बीजों का निर्माण कर नष्ट हो जाते हैं

  • इस प्रकार के पौधे बहुत ही कम होते हैं उदाहरण - केला

  • बहु वर्षीय पौधे

  • यह पौधे कई वर्षों तक जीवित रहते हैं

  • इनके संपूर्ण जीवन काल में फूल और फल लगते रहते हैं

  • ये शाक, झाड़ी या वृक्ष तीनों तरह के पौधे होते हैं उदाहरण दूब घास, गुलाब, आम, कटहल आदि।

  • पौधे की जमीन के अंदर का भाग जड़ तंत्र तथा जमीन के ऊपर का भाग प्ररोह तंत्र कहलाता है

मूसला जड़

  • मूसला जड़ में एक मुख्य मोटी जड़ होती है जिसे प्राथमिक जड़ कहते हैं

  • मुख्य जड़ से अनेक पतली शाखाएं निकलती हैं जिन्हें द्वितीयक  जड़े  कहते हैं

  • इनसे पुनः निकलने वाली शाखाओं को तृतीयक जड़ें कहते हैं

  • मूसला जड़ जमीन में गहराई तक जाती है और मिट्टी में फैल कर पौधों को मजबूती से स्थिर रखती है

  • चना, मटर, सेम आदि में मूसला जड़ पाई जाती है

अपस्थानिक जड़

  • गेहूं धान तथा मक्के आदि में अपस्थानिक जड़ पाई जाती है

  • इसमें बीजों से निकले मूलांकुर की वृद्धि कुछ लंबाई के बाद रुक जाती है और तने के आधार से अनेक शाखाएं रेशों की भांति निकल आती हैं इन्हें अपस्थानिक जड़ (झकड़ा  या रेशेदार जड़ें ) कहते हैं

  • जड़ें पौधों को भूमि में स्थिर रखती हैं तथा मूल रोम की सहायता से भूमि से जल तथा उसने घुले खनिज लवणों का अवशोषण करती है

  • तने में गांठ जैसी रचना को पर्व संधि कहते हैं

  • निकटतम दो पर्व संधियों के बीच के स्थान को पर्व कहते हैं

  • तने के द्वारा जड़ों से पत्तियों तक जल का संवहन होता है तना जल एवं खनिज पदार्थों की संवहन और भोजन स्थानांतरण का कार्य करता है

  • पत्ती  का वह भाग जिसमें पत्ती तने से लगी होती है पर्णाधार कहलाता है

  • पत्ती का चपटा भाग पर्ण फलक कहलाता है

  • पर्ण फलक तथा पर्णाधार के बीच डंठल नुमा भाग पर्णव्रंत  कहलाता है

  • पत्ती की सतहों पर अनेक छिद्र रंध्र उपस्थित होते हैं इन्हें पर्णरंध्र कहते हैं

  • पर्णरंध्र द्वारा पत्तियां श्वसन वाष्पोत्सर्जन तथा प्रकाश संश्लेषण जैसे महत्वपूर्ण कार्य करती हैं

  • सामान्यतः पुष्प की 4 भाग होते हैं

  • बाह्य दल

  • दल

  • पुंकेसर

  • स्त्री केसर

  • पुष्प पौधे का जनन अंग है इसके द्वारा पौधे प्रजनन (अपनी वंश वृद्धि) करते हैं

  • निषेचन के पश्चात अंडाशय से फल विकसित होता है

  • गाजर की जड़े ऊपर की ओर मोटी तथा नीचे की ओर क्रमशः  पतली होती है इस रूप को शंकु रूप कहते हैं

  • मूली की जड़ ऊपर तथा नीचे दोनों ही ओर पतली हो जाती है इसे तुर्क रूप कहते हैं

  • शलजम की जड़ें घड़े जैसी होती हैं इसे कुंभी रूप कहते हैं

  • आलू के भूमिगत तने के सिरे फूल जाते हैं इसे स्तंभ कंद कहते हैं

  • आलू, अदरक, अरबी यह सभी भूमिगत तनों के  रूपांतरण है

  • कमजोर तने से पतली पतली धागे नुमा सरचनाएं निकल आती हैं इन्हें प्रतान कहते हैं

  • प्रतान आधार के चारों ओर लिपटकर आरोहण में सहायता करती हैं जैसे अंगूर, मटर आदि

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