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तंतु से वस्त्र तक

  • रुई कपास के पौधे के बीजों से प्राप्त होता है

  • जूट पटसन/सनई के तनों से प्राप्त होता है

  • फ्लैक्स अलसी/तीसी के तनों से प्राप्त होती है

  • नारियल जटा नारियल के फलों से प्राप्त होती है

  • ऊन भेड़ के बालों से प्राप्त होती है

  • रेशम के धागे रेशम कीट के कोकून से प्राप्त किये जाते है

  • वस्त्र धागों से मिलकर बनता है धागा तंतुओं या रेशों से मिलकर बनता है

कपास

  • कपास (रुई) एक पादप रेशा है जिसे कपास पौधे के बीज (बिनोला) से प्राप्त किया जाता है।

  • भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और पंजाब राज्य में कपास की खेती प्रमुखता से होती है।

  • कपास की खेती के लिए काली मिट्टी तथा उष्ण जलवायु (तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेड से 27 डिग्री सेंटीग्रेड) के बीच उपयुक्त रहता है।

  • काली मिट्टी में नमी को अपने अंदर बनाए रखने की क्षमता होती है इसलिए सामान्य वर्षा ही कपास की खेती के लिए लाभकारी होती है।

  • कपास के बीज वसंत ऋतु के पूर्व खेतों में बोए जाते हैं ।

  • लगभग 2 माह बाद कपास की झाड़ी तैयार हो जाती है ।

  • फल के अंदर कपास के तीन से चार बीज होते हैं प्रत्येक बिनोले की सतह से अनेकानेक सफेद रंग के रेशे निकलते हैं ।

  • पूर्ण परिपक्व फल के फटने पर अधिकाधिक कपास तंतु से ढके बिनोले दिखाई देने लगते हैं इन्हें कपास गोलक कहते हैं ।

  • कपास के गोलकों से कपास के बीज (बिनौले) को पृथक करने की प्रक्रिया को कपास ओटना कहते हैं ।

  • रुई का उपयोग सूती कपड़े, चादर, पर्दे बनाने में किया जाता है गद्दा, तकिया, रजाई में रुई भरा जाता है ।

  • कपास से विभिन्न प्रकार के कागज बनाए जाते हैं ।

  • BT कपास  के पौधों में सैकड़ों टॉक्सिन उत्पन्न करने की क्षमता है जिसके कारण फसलों की कीट पतंगों से रक्षा होती है।

जूट

  • जूट एक पादप रेशा है जिसे पटसन पौधे (सनई) के तने से प्राप्त किया जाता है ।

  • भारत में जूट की खेती मुख्यतः पश्चिमी बंगाल, असम और बिहार में की जाती है ।

  • पटसन की खेती के लिए कछार की मिट्टी (जलोढ़ मिट्टी) अधिक उपयुक्त होती है ।

  • पटसन के बीज  वर्षा ऋतु में बोए जाते हैं ।

  • पटसन के पौधे 8 से 10 फीट लंबे होते हैं ।

  • लगभग 3 माह बाद इसमें पीले रंग के फूल दिखाई देने लगते हैं ।

  • सामान्यतः पटसन की फसल को पुष्पन अवस्था में ही काटते हैं क्योंकि इसी अवस्था में ही पटसन के तनो से लचीले तथा मजबूत जूट के रेशे प्राप्त किए जा सकते हैं ।

  • पटसन के तने को रुके हुए जल में कुछ दिनों तक रखकर जूट के रेशों को ढीला करने की प्रक्रिया पटसन की रेटिंगकहलाती है ।

  • जूट का उपयोग रस्सी, डलिया, बोरा, टाट-पट्टी, दरी आदि बनाने में किया जाता है ।

सूती धागे की  कताई

  • ऐंठने से रेशे (तंतु) की मजबूती बढ़ जाती है।

  • रेशों से धागा बनाने में रुई के एक पुंज से रेशों को खींच कर ऐंठते हैं ऐसा करने से रेशे आसपास आ जाते हैं और धागा बन जाता है इस प्रक्रिया को कताई कहते हैं।

  • कताई के लिए एक सरल युक्ति ‘हस्त तकुआ’  का उपयोग किया जाता है जिसे तकली कहते हैं।

  • हाथ से प्रचलित कताई में उपयोग आने वाली एक अन्य युक्ति चरखा है।

  • धागों की 2 सेटों को आपस में व्यवस्थित करके वस्त्र बनाने की प्रक्रिया को बुनाई कहते हैं।

  • एकल धागे से वस्त्र बनाने की प्रक्रिया बंधाई कहलाती है।

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