जल
जल की आवश्यकता
हमें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन के अतिरिक्त सबसे अधिक जल की आवश्यकता होती है।
पृथ्वी पर जीवन जल के कारण ही है।
जल की उपयोगिता
मानव शरीर में जल मनुष्य के लिए अति आवश्यक है। यह भोजन के आवश्यक तत्वों को एक अंग से दूसरे अंग तक पहुँचाता है। जल शरीर का तापमान नियन्त्रित करता है।
उद्योगों के लिएजल का उपयोग बॉयलर में भाप बनाने, रसायनों को घोलने, मशीनों की साफ-सफाई करने के लिए उपयोग किया जाता है।
विद्युत उत्पादनमें नदियों पर बाँध बनाकर जल से विद्युत तैयार किया जाता है।
दैनिक कार्योंमें जल का उपयोग प्रतिदिन पीने, खाना पकाने, सफाई करने, कपड़ा धोने, स्नान करने शौचालय, सिंचाई आदि में किया जाता है।
मनोरंजन के क्षेत्रमें मछली पकड़ना, तैराकी, नौकाविहार आदि। - जल के द्वारा ही करते हैं।
कृषि में सहायक -बीजों का अंकुरण, पौधों में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया, पौधो की जैविक क्रिया हेतु जल आवश्यक है। बिना जल के खेतों में सिंचाई असम्भव है।
परिवहन के लिएनदियों, झीलों एवं समुद्रों में नाव की सहायता से सामान एवं मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक आ जा सकते हैं।
जल जीवधारियों का मूल घटक है-जल जीवधारियों का मूलभूत घटक है। सभी पेड़-पौधों एवं जन्तुओं के शरीर में जल बड़ी मात्रा में उपस्थित रहता है। जैसे मनुष्य के शरीर में भार के अनुसार 70%, हाथी के शरीर में 80% तथा पेड़-पौधों में 60% तक जल उपस्थित रहता है इसी प्रकार सभी सजीवों के शरीर में अधिकांश जल की मात्रा रहती है।
जल अनेक वनस्पतियों तथा जन्तुओं के रहने का स्थान है- तालाब में मछली, मेढक, बत्तख, केकड़ा, कछुआ आदि जन्तु तथा कमल, सिंघाड़ा, जलकुम्भी आदि पौधे पाये जाते हैं। इसी प्रकार नदियों में मगरमच्छ, घड़ियाल तथा समुद्र में हेल, सील, डॉलफिन जैसे बड़े जन्तु तथा विभिन्न प्रकार के जलीय पौधे पाए जाते है।
जल द्वारा कीटाणुओं, बीजों एवं फलों का प्रकीर्णननदियों के किनारे लगे वृक्षों के फल एवं बीजों का प्रकीर्णन (बिखराव) भी जल प्रवाह के द्वारा ही होता है
बड़ी नदियों में नाव एवं जहाज का उपयोग आवागमन के लिए किया जाता है। समुद्रों में जहाज द्वारा सामग्री एवं यात्रियों का आवागमन एक देश से दूसरे देश के लिए होता है।
नाव को हाउस बोट बनाकर मनुष्य झीलों में निवास करते हैं।
बहुत से खनिज लवण जल में घुले होते हैं। ये पौधों में जड़ों द्वारा जल के साथ अवशोषित होकर उनके विभिन्न भागों तक पहुचते हैं।
पौधे प्रकाश संश्लेषण एवं अन्य क्रियाओं में जल का उपयोग करते है।
जल में आक्सीजन घुली होती है। जलीय जीव श्वसन के लिए आक्सीजन जल के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं।
मनुष्य के शरीर में होने वाली विभिन्न क्रियाओं के कारण उत्पन्न हानिकारक पदार्थ जैसे यूरिया, लवण आदि भी जल के माध्यम से मूत्र व पसीना के रूप में बाहर निकलते रहते हैं।
जीवधारियों में रक्त के द्वारा भी जल शरीर में संचरित होता है।
जल के श्रोत
नदी, तालाब, झरना, वर्षा, पर्वतों पर जमी बर्फ तथा भूमिगत जल आदि जल के प्राकृतिक स्रोत हैं।
कुआँ, नलकूप तथा हैण्डपम्प द्वारा हम भूमिगत जल प्राप्त कर सकते हैं।
अधिकांश नदी, नलकूप, झील मीठे व ताजे जल के स्रोत हैं।
पृथ्वी पर जल का सबसे बड़ा स्त्रोत समुद्र है
पृथ्वी के धरातल का दो तिहाई से अधिक भाग समुद्र से घिरा है।
समुद्र प्राकृतिक जल का सबसे बड़ा स्त्रोत है।
समुद्र का जल बिना शुद्ध किए पीने के योग्य नही है क्योंकि समुद्र के जल में सबसे अधिक (लगभग 3.6प्रतिशत) अशुद्धियाँ पायी जाती है। जिसमें 2.6प्रतिशत नमक है। इसी कारण समुद्र का जल खारा होता है और इसे पीने तथा कृषि के उपयोग में नही लाया जाता है।
ठण्डे क्षेत्रों में जल बर्फ के रूप में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
पृथ्वी की सतह के प्रति वर्ग किलोमीटर के ऊपर स्थित वायुमण्डल में लगभग 30,000टन जलवाष्प पायी जाती है।
वर्षा का जल स्वादहीन होता है।
सामान्यतः वर्षा का जल समुद्र प्राकृतिक जल का सबसे बड़ा स्रोत अपेक्षाकृत शुद्ध होता है।
जिन स्थानों पर वायु प्रदूषण अधिक होता है वहाँ पर वर्षा के जल में भिन्न-भिन्न प्रकार के अल्प मात्रा में अम्ल उपस्थित हो जाता है जिसे अम्ल वर्षा (Acid Rain) भी कहते है।
वर्षा जल का कुछ प्रतिशत जमीन द्वारा अवशोषित हो जाता है। यह जल पत्थरों तथा बालू की विभिन्न परतों से छन कर पृथ्वी की गहराई में, चट्टानों के ऊपर एकत्रित हो जाता है। खनिज लवणों के घुले होने के कारण यह जल स्वाद युक्त तथा पीने योग्य हो जाता है।
विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जल का स्वाद उसमें घुले खनिज लवणों के कारण होता है इसलिए किसी स्त्रोत के जल का स्वाद मीठा तो किसी का स्वाद खारा होता है।
समुद्र, झील, नदी, तालाब, भूमिगत जल तथा वर्षा, जल के मुख्य स्रोत हैं।
कुआँ, नलकूप, हैंडपम्प पीने योग्य जल के स्रोत हैं।
विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जल के स्वाद में भिन्नता उसमें मिले खनिज लवणों के कारण होती है।
जल के भौतिक गुण एवं अवस्थायें
रंग एवं गंध जल एक रंगहीन, गंधहीन पदार्थ है।
स्वाद शुद्ध जल स्वादहीन होता है।
अवस्था जल तीन अवस्थाओं - ठोस, द्रव एवं गैस में पाया जाता है।
हिमांक एवं गलनांक जल का हिमांक ०°C तथा क्वथनांक 100°C होता है अर्थात जल 0°C पर बफ में बदलता है तथा 100°C पर उबलता है।
कुचालकता शुद्ध जल विद्युत का कुचालक है।
विलेयता जल में अधिकांश पदार्थ घुल जाते हैं। इसलिए इसे सार्वत्रिक विलायक कहते हैं।
जल को 0 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करने पर वह बर्फ में तथा 100 डिग्री सेल्सियस गर्म करने पर वाष्प में बदल जाता है।
जल की तीन अवस्थाएं होती हैं- ठोस (बर्फ), द्रव (जल), गैस (जलवाष्प)
पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र (रन्ध्र) पाये जाते हैं। जिन्हें वायुरन्ध्र कहते हैं। इन्ही रन्ध्रों से पौधों का अतिरिक्त जल वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में मिलता रहता है। यह क्रिया शीत ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में तीव्र गति से होती है।
द्रव जल का वाष्प रूप में परिवर्तन वाष्पन एवं जल वाष्प का द्रव जल के रूप में परिवर्तन संघनन कहलाता है।
मृदु एवं कठोर जल
लवणों की घुलनशीलता के आधार पर जल मृदु एवं कठोर होता है।
जल में कुछ लवणों की उपस्थिति हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होती है। ऐसे जल को मृदु जल कहा जाता है।
इसके विपरीत कुछ अन्य लवणों के घुले होने पर जल कुछ कार्यों के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। ऐसे जल को कठोर जल कहते हैं।
कठोर जल साबुन के साथ कम झाग देता है।
मृदु जल साबुन के साथ अधिक झाग देता है।
कठोर जल का प्रयोग यदि बड़े पैमाने पर भाप बनाने के लिए ब्वायलर में किया जाए तो ब्वायलर की तली एवं दीवारों पर धीरे-धीरे सफ़ेद रंग के पदार्थ की पपड़ी जमती जाती है इससे जल को भाप में बदलने के लिए अधिक ईंधन खर्च होता है तथा ब्वायलर फट भी सकता है। अतः कठोर जल उद्योगों के लिए उपयोगी नहीं होता है।
जल में अशुद्धियाँ एवं उनका शोधन
अशुद्धियों को दूर करना, रोग के कीटाणुओं से जल को मुक्त करना ही जल का शोधन कहलाता है।
अशुद्ध जल पीने के कारण टायफाइड, अतिसार, हैजा, हिपेटाइटिस पीलिया जैसे रोग फैलते हैं।
जल का शोधन
1. तलछटीकरण
नदी के जल को पम्प द्वारा तलछटीकरण हेतु एक टंकी में एकत्रित किया जाता है। कुछ समय बाद टंकी की तली में निलम्बित अशुद्धियाँ बैठ जाती हैं। तलछटीकरण की प्रक्रिया तेज करने के लिए फिटकरी (K2SO4AL2(SO)3.24H2O) का उपयोग किया जाता है
2. छानना
तलछटीकरण के बाद जल को कोयला (एक्टीवेटेड कार्बन), कंकड़ो एवं रेत (बालू) की कई परतों से होकर छानते हैं. जिससे धूल तथा अघुलनशील अशुद्धियाँ दूर हो जाती है। कोयला (Activated Carbon) रंग तथा गंध को दूर करता है।
3. क्लोरीनीकरण
छनित जल में उपस्थित कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए ब्लीचिंग पाउडर (CaOCI2) या क्लोरीन गैस प्रवाहित की जाती है। क्लोरीन जल में उपस्थित कीटाणुओं को नष्ट कर देती है। इस प्रक्रिया को क्लोरोनीकरण कहते हैं। जल में उपस्थित कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए अन्य रासायनिक पदार्थ भी प्रयोग किया जाता है जैसे पोटैशियम परमैग्नेट (KMnO4), ओजोन (O3), आदि। शुद्ध जल को पाइपों द्वारा घरों तक पहुँचाया जाता है।
घरों में जल को उबालकर भी शुद्ध किया जा सकता है।
पृथ्वी पर पाए जाने वाले जल का 97 प्रतिशत समुद्र में पाया जाता है।
समस्त जल का केवल एक प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। अतः जल की एक भी बूंद व्यर्थ न बहने दें।
जल में उपस्थित कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए, कुछ रसायनों का भी प्रयोग किया जाता है। जैसे- पोटैशियम परमैग्नेट, ब्लीचिंग पाउडर, क्लोरीन गैस तथा ओजोन गैस आदि।
आज कल कपड़े साफ करने के लिए साबुन के स्थान पर अपमार्जक (डिटर्जेन्ट) का उपयोग होने लगा है। अपमार्जक मृदु तथा कठोर दोनों जल के साथ झाग देता है।
जल हमारे जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। अर्थात् जल ही जीवन है।
जल कृषि कार्य, दैनिक कार्य, उद्योगों एवं विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है।
मनुष्य के शरीर में भार के अनुसार 70% जल की मात्रा होती है।
जल के शोधन में फिटकरी, तलछटीकरण, कोयला, रंग तथा गंध को दूर करने तथा ब्लीचिंग पाउडर, क्लोरीन, पोटैशियम परमैंग्नट, जल में उपस्थित कीटाणुओं को नष्ट करने में उपयोग किया जाता है।